Wednesday, May 22, 2019

क्या ज़मीनी मुद्दे उठा पाएगा विपक्ष?

पुतुल कुमारी के चुनाव मैदान में उतरने से ज़मीन पर एनडीए मतों में बिखराव होने के झलक दिखाई दे रही रही है. आम तौर पर शहरी मतदाताओं का बड़ा हिस्सा भाजपा या कहें कि एनडीए समर्थक माना जाता है लेकिन बांका शहर में इस मतदाता वर्ग में बिखराव दिखाई दे रहा है.
निजी बातचीत से लाकर चाय की दुकानों पर होने वाली बहसों में यह बात सामने आ रही है.
बांका पहुँचने पर जब मैंने एक शख्स से पुतुल कुमारी के चुनाव कार्यालय का पता भर पूछा तो उन्होंने छूटते हुए कहा, "बहुत सही कैंडिडेट का नाम लिया है आपने. इस बार उनको ही वोट जायेगा."
इस अप्रत्याशित टिप्पणी से जब मैंने उनका तार्रुफ़ पूछा तो उन्होंने अपना परिचय विजयनगर मोहल्ले में रहने वाले मनोज सिंह के रूप में दिया. मनोज ने आगे बातचीत में नरेंद्र मोदी की खुल कर तारीफ भी की.
वहीं शहर के आज़ाद चौक में सैलून चलाने वाले सुरेश कुमार मोदी को मज़बूत नेता और दूसरे नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों को कमतर मानते हैं. साथ ही उनका यह भी कहना है कि जब पुतुल कुमारी ने भाजपा से इस्तीफ़ा ही दे दिया है तो अब उनको भाजपा समर्थकों का वोट कैसे मिलेगा.
बांका लोकसभा सीट पर बीते कुछ चुनावों में बहुत कम वोटों के अंतर से हार-जीत का फैसला होता रहा है.
भारत के चुनाव आयोग ने आगामी लोकसभा के लिए चुनावी कार्यक्रम घोषित कर दिया है.
सात चरणों का मतदान 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई तक होंगे और नतीजे 23 मई को आ जाएंगे.
चुनावी कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावी माहौल शुरू हो गया है.
चुनावों में बीजेपी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का मुक़ाबला बिखरे हुए विपक्ष से होगा.
कांग्रेस पार्टी ने कई जगह क्षेत्रीय पार्टियों से तो गठबंधन किए हैं लेकिन देशव्यापी गठबंधन अभी तक नहीं बन सका है.
आज के माहौल में बीजेपी का चुनावी अभियान निश्चित तौर पर थोड़ा भारी नज़र आ रहा है.
हमारे दौर के सबसे प्रभावशाली वक्ता निसंदेह नरेंद्र मोदी हैं. बीजेपी का चुनावी अभियान आक्रामक रूप से अपने रास्ते चल रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा ज़ोर अपने अभियान में लगा रखा है. वो अपने भाषणों में हर बार कोई न कोई नई बात ले आते हैं.
विश्लेषक उनके दावों की सच्चाई पर तर्क-वितर्क कर सकते हैं, लेकिन इनका जनता पर निश्चित तौर पर प्रभाव हो रहा है.
उदाहरण के तौर पर ग्रेटर नोयडा में विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करने आए नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के अधिकतर हिस्से में बिजली, पानी और सड़क जैसे मुद्दों पर बात की लेकिन अंत में वो अपनी बात को राष्ट्रवाद पर ले आए और पाकिस्तान में चरमपंथियों के कैंप पर भारतीय वायुसेना के हमले का ज़िक्र किया.
इन हवाई हमलों पर सवाल उठाने के लिए मोदी ने विपक्ष की कड़ी आलोचना भी की.
मोदी की जो रणनीति 2014 में थी अभी भी वही है. ऐसे मुद्दे जो जनता की भावनाएं भड़काते हैं, लोगों में ध्रुवीकरण करते हैं मोदी उन मुद्दों पर ख़ुद तो बहुत ज़्यादा नहीं बोलेंगे लेकिन उनके बाद की कतार के सभी नेता ज़ोर-शोर से इन्हीं मुद्दों पर बात करेंगे.
लेकिन इसके जबाव में विपक्ष की हालत बहुत अच्छी नहीं है. राहुल गांधी रोज़ रफ़ाल घोटाले की बात करते हैं. कांग्रेस के अन्य नेता रोज़गार की बात करते हैं लेकिन इसका बहुत असर नहीं हो रहा है.
उत्तर प्रदेश में जातिगण दृष्टिकोण से देखा जाए तो एक ताक़तवर गठबंधन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच हुआ है.
बसपा अध्यक्ष मायावती ने पुलवामा हमले और पाकिस्तान में हुए हवाई हमले पर सवाल ज़रूर पूछे हैं, लेकिन जिस आक्रामकता, जिस तेज़ी की ज़रूरत विपक्ष को है वो दिख नहीं रही है. विपक्ष का गठबंधन अभी भी ठीक से जम नहीं रहा है. उदाहरण के तौर पर दिल्ली को ले लीजिए. कभी कहा जा रहा है कि गठबंधन होगा, कभी नहीं होगा.
बीजेपी का चुनाव अभियान किस दिशा में जाएगा ये स्पष्ट हो गया है. बहुत संभव है कि एक और हवाई हमला हो जाए. बीजेपी राष्ट्रवाद के मुद्दे पर ही चलेगी.

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