Wednesday, July 24, 2019

जर्मनी का एक नौजवान जो बांस की बनी साइकिल से लगा रहा है दुनिया भर का चक्कर.

बर्लिन बुचर्स गिल्ड के निदेशक क्लाउस गेरलाक कहते हैं, "हम न केवल प्रशिक्षित कसाइयों की कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि दुकानों के लिए भी स्टाफ नहीं मिल रहे."
मांस की दुकानें बंद होने और प्रशिक्षु कसाइयों की कमी ने सबसे ज़्यादा राजधानी बर्लिन को परेशान किया है.
जुलाई 2018 में बर्लिन बुचर्स गिल्ड ने घोषणा की कि वह शहर के एकमात्र टेक्निकल बुचरी कॉलेज में प्रशिक्षुओं को पढ़ाने का कार्यक्रम बंद कर देगा.
गेरलाक कहते हैं, "24 साल पहले जब यह टेक्निकल कॉलेज खोला गया था तब बर्लिन और ब्रैंडेनबर्ग में 1,250 प्रशिक्षु थे. पिछले साल उनकी तादाद सिर्फ़ 145 थी."
कसाई और बिक्री, दोनों प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दौरान प्रशिक्षु बर्लिन में दुकानों पर काम कर सकते हैं.
लेकिन क्लासरूम में होने वाली पढ़ाई, जिसमें वे नई मशीनों और दूसरे तरीकों के बारे में सीखते हैं- उनको 200 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में लीपज़िग के टेक्निकल कॉलेज जाना पड़ता है.
नये युवा प्रशिक्षुओं को आकर्षित करने के लिए क्या किया जा सकता है? गेरलाक का कहना है कि बेहतर वेतन और सुविधाओं से कुछ काम बन सकता है.
बर्लिन में ट्रेनी महीने में अधिकतम 700 यूरो (785 डॉलर या 635 पाउंड) वेतन पा सकते हैं, जिसे स्थानीय मजदूर संगठनों ने तय किया है.
देश के दूसरे हिस्सों में उनके साथी 1,000 यूरो (1,120 डॉलर या 905 पाउड) से अधिक कमा सकते हैं.
गेरलाक कहते हैं, "हमें याद रखना होगा कि वे सिर्फ़ सहायक कर्मचारी नहीं हैं, वे हमारे कारोबार के भविष्य हैं."
कसाई की पारंपरिक दुकानों को बचाए रखने के लिए सिर्फ़ नकदी काफी नहीं है.
फूड एक्टिविस्ट और बर्लिन की कसाई दुकान कंपेल एंड क्यूले के सह-संस्थापक हेंड्रिक हासे के मुताबिक इस क्षेत्र के प्रति लोगों का नजरिया बदलने की ज़रूरत है.
"इन दिनों लोग ज़्यादा जानकार हैं. भोजन के बारे में उनके कई सवाल हैं. क्या मांस खाना ठीक है? इसका जलवायु पर क्या असर पड़ता है? जानवर कहां से आते हैं?"
इन विषयों पर सार्थक चर्चा में शामिल होने से मांसाहार छोड़ रहे समाज में इस परंपरा को जीवित रखने में मदद मिल सकती है.
35 साल के हासे पेशे से संचार सलाहकार और डिजाइनर हैं. 31 साल के जोर्ग फोर्स्टेरा के साथ मिलकर उन्होंने 2015 में कंपेल एंड क्यूले खोली थी.
पारदर्शिता शुरुआत से ही उनके बिजनेस मॉडल के केंद्र में रही है. वह न सिर्फ़ उत्पाद की उत्पत्ति के बारे में पूरी जानकारी देते हैं, बल्कि उसे तैयार करते हुए भी दिखाते हैं.
फोर्स्टेरा और टीम के अन्य सदस्य एक विशाल कांच की खिड़की के पीछे मांस काटते हैं और सॉसेज तैयार करते हैं, जहां ग्राहक उनको देख सकते हैं.
हासे कहते हैं, "लोग घोटालों और सुपरमार्केट में बिकने वाले मांस से तंग आ चुके हैं. वे अपने पैसे अच्छे खाने पर ख़र्च करना चाहते हैं और खेत से उनके टेबल तक के सफ़र के बारे में जानना चाहते हैं."
हासे का कहना है कि कसाइयों को अपने कारोबार में इस तरह का खुलापन लाने के रास्ते तलाशने होंगे.
सोशल मीडिया, प्रोडक्शन वर्कशॉप और अन्य तरह से लोगों से संपर्क करने से न सिर्फ़ ग्राहकों को जोड़ा जा सकता है, बल्कि इससे इस क्षेत्र में संभावित नये प्रशिक्षुओं को भी आकर्षित किया जा सकता है.
लेकिन अगर जर्मनी के कसाई नई चीजों को नहीं अपनाएंगे तो सदियों पुरानी परंपरा दांव पर लग सकती है.
हासे कहते हैं, "सॉसेज या लेबरकेसे बनाने का नुस्खा आम तौर पर किताबों में नहीं लिखा जाता. वे लोगों के दिमाग में होते हैं."
"यदि वे हार मान लेंगे तो हम अपने खानपान की विरासत खो देंगे. जैसे-जैसे वे अपनी दुकानें बंद कर रहे हैं हम अपनी परंपराओं को खो रहे हैं."

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