Monday, August 27, 2018

आपके इंटरनेट की आदत से वन्यजीवों को कैसे ख़तरा

दिन बहुत लंबा और थकाने वाला गुज़रा है. काम ख़त्म करके आप थोड़े आराम के मूड में हैं. सुकून पाने के लिए आप इंटरनेट ऑन करते हैं और प्यारे जानवरों की तस्वीरें देखते लगते हैं ताकि मुस्कुरा सकें.
जो लोग जानवरों से प्यार करते हैं उनके साथ अक्सर ऐसा होता है. लेकिन हमारी ये आदत जंगली जानवरों को नुक़सान पहुंचा रही है.
जैसे कि ऑनलाइन दुनिया में रेड पांडा बहुत लोकप्रिय हैं. वो एक इंटरनेट ब्राउज़र फ़ायरफॉक्स के हमनाम भी हैं. जैसे ही आप इंटरनेट पर इन रोंएदार जानवरों को तलाशना शुरू करते हैं, आप के सामने ढेर सारे विकल्प खुल जाते हैं.
बर्फ़ पर मस्ती करते पांडा की तस्वीरें और वीडियो, इंटरनेट आप की नज़र कर देता है. कहीं पर पत्थर देखकर ख़ौफ़ खाते पांडा, तो कहीं पत्तियां चबाते हुए वीडियो.
आम तौर पर इन तस्वीरों की जगह के बारे में पता नहीं होता. मगर, रेड पांडा की ऐसी ज़्यादातर तस्वीरें नेपाल और चीन की होती हैं, जहां पर ये जानवर जंगलों में रहते हैं.
लेकिन, इंसान की पिछली तीन पीढ़ियों के दौर में पांडा की आबादी आधी रह गई है. आज पांडा बेहद दुर्लभ जानवर माने जाते हैं. उनकी नस्ल पर ख़ात्मे का ख़तरा मंडरा रहा है. माना जाता है कि आज की तारीख़ में केवल ढाई हज़ार के क़रीब पांडा बचे हैं जो जंगलों में रहते हैं.
रेड पांडा नेटवर्क नाम का कल्याणकारी संस्थान इन जानवरों के बारे में जागरुकता फैलाने और उनकी तकलीफ़ को दुनिया को समझाने का काम करता है. 2010 से रेड पांडा नेटवर्क हर साल रेड पांडा डे आयोजित करता है. इसका मक़सद दुनिया के तमाम वन्य जीव प्रेमियों को ये समझाना होता है कि ये जीव केवल प्यारे यू-ट्यूब वीडियो नहीं हैं.
अफ़सोस की बात ये है कि तमाम कोशिशों के बावजूद इन जानवरों की तस्करी रुक नहीं रही. इसी साल जनवरी में आधा दर्जन रेड पांडा को पूर्वी एशियाई देश लाओस में तस्करों के चंगुल से आज़ाद कराया गया था. जानवरों के तस्कर इन पांडा को पालतू जानवर के तौर पर बेचने की कोशिश में थे.
अब रेड पांडा की ये तस्करी इंटरनेट पर उनकी लोकप्रियता का नतीजा है या नहीं, ये कहना मुश्किल है. लेकिन इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि किसी जीव की छवि को ऐसे बनाकर पेश करने से उन पर ख़तरा मंडराने लगता है.
इसकी बड़ी मिसाल है सोनिया नाम का स्तनधारी जीव. डिजिटल युग के शुरुआती दिनों में इस जीव का गुदगुदी करने से ख़ुशी में हाथ उठाने वाला वीडियो ज़बरदस्त वायरल हुआ था. बाद में जानवरों के एक्सपर्ट ने बताया कि जिसे हम सोनिया का गुदगुदी का मज़ा लेना समझ रहे थे, वो असल में हाथ उठाकर अपनी परेशानी ज़ाहिर कर रहा था. इस पालतू जानवर का वज़न बढ़ा हुआ था. वो रूस में एक फ्लैट में क़ैद कर के रखा गया था. जब भी उसके मालिक उसे गुदगुदी करते, वो हाथ उठाकर मानो ये कहता था कि मुझे बख़्श दो. लेकिन दुनिया भर में उसका वीडियो देखने वालों ने इसका ग़लत मतलब निकाला.
2013 में ब्रिटेन की जीव वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर एना नेकारिस और उनकी टीम ने इस तस्वीर को देखने वाले इंटरनेट यूज़र्स पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. रिपोर्ट के मुताबिक़, जब स्लो आइरिस का वीडियो पहली बार यू-ट्यूब पर डाला गया, तो इसे देखने वाले क़रीब एक चौथाई लोगों ने इस जानवर को पालतू बनाकर रखने की ख़्वाहिश जताई. जबकि इस जंगली जीव के ख़ात्मे का ख़तरा मंडरा रहा है.
प्रोफ़ेसर एना नेकारिस इंटरनेट के जंगली जानवरों पर बुरे असर को लेकर अब भी रिसर्च कर रही हैं. वो कहती हैं कि इस नस्ल के जानवरों के हालात ज़रा भी नहीं सुधरे हैं. हालांकि इनका अवैध कारोबार तो कम हुआ है. मगर इसकी वजह ये है कि कई जगह से ये जानवर विलुप्त हो चुका है. वो कहती हैं कि तस्करी की वजह से स्लो आइरिस के पूरी तरह से ख़ात्मे का डर है. उन्हें सिर्फ़ पालतू बनाने के लिए शिकार नहीं किया जा रहा, बल्कि पारंपरिक दवाओं के लिए भी मारा जा रहा है.
जंगली जानवरों की तस्करी पर निगरानी रखने वाली संस्था ट्रैफ़िक (TRAFFIC) का कहना है कि चीन में जंगली जानवरों के अवैध कारोबार के विज्ञापन बहुत कम हुए हैं. के बीच इनमें 50 फ़ीसद की कमी आई है. लेकिन, इससे ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं. आज जंगली जानवरों का अवैध कारोबार ऑनलाइन होने लगा है और वो भी प्राइेवट ऑनलाइन कम्युनिटी और सोशल नेटवर्क के भीतर. इन्हें पकड़ पाना और मुश्किल हो गया है. मतलब अब ये धंधा अंडरवर्ल्ड हो गया है.
जानवरों के लुभावने वीडियो के नीचे बस आप को टाइप करना है-मुझे भी ऐसा एक चाहिए. फिर ऐसे तमाम लिंक मिल जाएंगे जो जानवरों की तस्करी के अवैध धंधे के अड्डे हैं.
मगर तस्करी का ये तूफ़ान थामने की कोशिशें भी तेज़ हो गई हैं. 2018 में दुनिया की 20 सबसे बड़ी तकनीकी कंपनियों ने वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फ़ंड से हाथ मिलाया है. इसका मक़सद जंगली जानवरों की अवैध तस्करी रोकना है. 2020 तक जंगली जानवरों की अवैध तस्करी को 80 फ़ीसद तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है.
जंगली जानवरों के शोषण की रोकथाम के लिए इंस्टाग्राम ने भी एक पहल की है जिसमें किसी ख़ास हैशटैग जैसे # या # टाइप करने पर पॉप-अप मैसेज आता है कि हमें इन जानवरों को बचाने की ज़रूरत है.
2018 में बीबीसी अर्थ ने भी इंस्टाग्राम के साथ मिलकर दो और हैशटैग #orangutan और #pangolin पर चेतावनी वाले संदेश जोड़े थे. हालांकि अभी इंस्टाग्राम ने ये नहीं बताया है कि इन हैशटैग का इस्तेमाल कम हुआ है या नहीं.
प्रोफ़ेसर एना नेकारिस कहती हैं कि हमें सोशल नेटवर्किंग साइट पर सतर्क रहना चाहिए. वो कहती हैं कि, 'इंस्टाग्राम ने एक और पहल की है जिसके तहत कोई यूज़र अगर किसी ख़ास हैशटैग से सर्च कर रहा है या कोई पोस्ट कर रहा है, तो उसे एक पॉप-अप नज़र आता है, जो ये समझाता है कि आप को इस जीव को बचाने की ज़रूरत है.'
सरगोशियों के इस खेल में तस्वीरों और वीडियो को जब लगातार शेयर किया जाता है, तो कई बार असल मक़सद छुप जाता है. इसलिए जब आप इंटरनेट पर प्यारे जानवरों की तस्वीरें देखें, तो दो पल ठहर कर सोचें. अगर आप को ऐसी तस्वीरों और वीडियो को शेयर करने पर ख़तरा नज़र आता है, तो इसकी ख़बर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के संचालकों को करें.
आप इन तस्वीरों को इस तरह से भी शेयर कर सकते हैं जिसमें लिखें कि इन जीवों को बचाने के लिए सबको एकजुट होने की ज़रूरत है.
जंगली जानवरों को बचाने में जुटे कई स्वयंसेवी संगठन तभी कारगर हो सकते हैं, जब ऑनलाइन दुनिया में उनके समर्थक बढ़ें. पैसे से मदद करें.
हम सब मिलकर ही ऐसी तस्वीरों के ज़रिए जागरूकता फैला सकता है. स्क्रीन पर जिन जीवों की तस्वीरें देखकर सुकून मिलता है, उन जानवरों को बचाना भी हमारा फ़र्ज़ है. पर्यावरण के लिहाज से भी इसकी सख़्त ज़रूरत है.

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